दीर्घ समयांतराल के पश्चात् कभी कभी एक ऐसा दिव्य व्यक्तित्व हमा रे
बीच में अवतरित होता है जो कि निर्विवाद रूप से किसी दूसरे दिव्य लोक
से आया हुआ एक विलक्षण व्यक्तित्व का स्वामी होता है जो कि उस अति
दूरवर्ती लोक की दीप्ति,महिमा और शक्ति का कुछ अंश इस भौतिक संसार में
लाता है.वह सम्पूर्ण भौतिकवादी मनुष्यों की भांति इस भौतिक संसार में
विचरता है लेकिन वह इस नश्वर भूमि का नहीं है. वह है एक अजनबी, एक
यायावर, सूक्ष्म सत्ता का प्रतिनिधि , जो मात्र एक रात्रि के लिए ही
ठहरता है.
वह अपने आप को यहाँ के मनुष्यों के साथ में सम्बध्द करता है, उनके
हर्ष विषाद का साथी बनता है. उनके सुख में सुखी और दुःख में दुखी होता है.
परन्तु इन सबके बीच उसको हमेशा स्मरण रहता है कि वह कौन है, कहाँ से आया है
और उसके इस मर्त्य भूमि पर आने का क्या उद्देश्य है? वह कभी अपने दिव्यत्व
को नहीं भूलता. वह हमेशा स्मरण रखता है कि वह तेजस्वी, महान, एवं दिव्य
आत्मा है.वह जानता है कि वह उस परम दिव्य सूक्ष्म क्षेत्र से आया है जहाँ
किसी भौतिक माध्यम की आवश्यकता नहीं हैं क्योंकि वह क्षेत्र स्वतः दिव्य
आलोक से आलोकित है.
ऐसी ही एक दिव्य दुर्लभ पवित्रात्मा का नाम है पूज्य पाद श्री गुरुदेव
राणा जी साहब, जो कि सभी तुलना से परे हैं क्योंकि वह समस्त साधारण माप
दण्डों और आदर्शों के परे हैं.अन्यान्य लोग ते जस्वी हो सकते हैं
लेकिन पूज्य साहब जी का व्यक्तित्व प्रकाशमय है.साधारण मनुष्यों की भाँति
पूज्यवर ज्ञान के तथाकथित मंथन तक सीमित नहीं है,जो कि पूज्य साहब के जीवन
दर्शन का अवलोकन करने से स्पष्ट द्रष्टिगोचर होता है. अन्य लोग शायद महान
भी हो सकते हैं लेकिन यह तुलनात्मक व्याख्या उनके अपने वर्ग के दूसरे लोगों
की तुलना में ही संभव है. परन्तु ये सब तुलनाएं तार्किक बातें हैं जो आज
के समय में एक बहुत प्रचलित प्रक्रिया का एक हिस्सा है.कोई भी एक संत,
साधारण या आम जनता से से अधिक पुण्यात्मा,पवित्र और निश्छल हो सकता है.
परन्तु इस सन्दर्भ में अगर हम प्रतिपल स्मरणीय पूज्य गुरुदेव साहब जी
को देखें तो पायेंगे कि उनके सम्बन्ध में कोई तुलना नहीं हो सकती है. पूज्य
गुरुदेव स्वयं अपने एक विशिष्ट वर्ग के हैं. वे उस दिव्य स्तर के हैं जो
हमारी मन बुध्धि और तर्कों से परे है, न कि इस भौतिक सांसारिक स्तर के माप
दण्डों के अनुसार. वह उस सूक्ष्म सत्ता के प्रतिनिधि हैं जो कि एक पूर्व
निर्धारित उद्देश्यों को परिपूर्ण करने के लिए उस सूक्ष्म लोक से इस
नश्वर संसार में अवतरित हुए हैं. कदाचित हममें से कोई शायद ही जान पाया हो
अब वे हमारे मध्य दीर्घकाल तक नहीं रुकेंगे....
पूज्य गुरुदेव के सानिध्य में मुझे भी अनवरत ४-५ वर्षों तक
रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ,और वे घड़ियाँ कब गुजर गयी पता ही नहीं
चला,बस आज एक ही बोध होता है कि मिथकों के अनुसार पारस अपने संपर्क में आने
पर लोहे को सोना बना देता है किन्तु हमारे पूज्य गुरुदेव तो
वो पारस मणि हैं जिनके संपर्क मात्र से ही सभी प्रकार से कल्याण हो जाता है
और उसके लिए लोहा होने की कोई अनिवार्यता भी नहीं है.हमारे सत्संग के
प्रत्येक सत्संगी के ढृढ़ विश्वास की तरह, मेरा भी यह अटूट विश्वास है कि
श्री गुरुदेव की मुझ पर असीम अनुकम्पा रही है और उन्होंने इस अकिंचन के
बड़े से बड़े अपराधों पर पर्दा डाल कर सिर्फ और सिर्फ अपनी अहेतुकी कृपा
और वरदहस्त बनाये रखा है और पूज्य श्री इस असीम अनुकम्पा से आज भी हम
सबका कल्याण कर रहे हैं.
धन्य है वह धरा जिसने ऐसी परम विभूति को जन्म दिया,धन्य हैं वे लोग जो
पूज्य श्री से लाभान्वित हुए और धन्य हैं वे कुछ लोग जिन्हें उनके पाद
पद्मों में बैठने का सौभाग्य मिला था.ऐसी दिव्य विभूति के आगमन पर प्रकृति
स्वयं आनंद और उल्लास प्रकट करती है और उनके महाप्रयाण पर रूदन और क्रंदन
कर विलाप करती हैं.